
यह सवाल आजकल आध्यात्मिक गलियारों में बहुत तेजी से उछल रहा है योग गुरु स्वामी रामदेव एक ऋषि मुनि है तपस्वी हैं योगाचार्य हैं उन्होंने अपने बल पर योग और आयुर्वेद का इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया है आजादी से पूर्व चलाए गए महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन को उन्होंने आजादी के बाद इतने व्यापक रूप में चलाया है कि ऐसा उदाहरण कहीं और देखने को नहीं मिलता स्वामी रामदेव सेल्फमेड हैं उन्होंने योग और आयुर्वेद को घर-घर तक पहुंचाया है और आज पूरी दुनिया स्वामी रामदेव की वजह से योग की कायल है और आज देश और विदेश में जगह-जगह योग के शिविर लगाए जाते हैं

स्वामी रामदेव भले ही पतंजलि योगपीठ जैसे साम्राज्य के मालिक हो परंतु उनका आचरण और जीवन चर्या एक ऋषि मुनि की तरह है वह सुबह 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त में अपनी साधना तपस्या और योग क्रियाओं में लग जाते हैं आज उत्तराखंड में पतंजलि योगपीठ एक ऐसा बड़ा संस्थान है जो एक लाख से ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है कुछ साल पहले स्वामी रामदेव ने एक रुचि सोया नाम की कंपनी को खरीदना चाहा और इस ठप पड़ी कंपनी को नया जीवन देने के लिए उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगाया और उनके इस कार्य में सबसे ज्यादा रुकावटें गौतम अडानी के समूह ने डाली परंतु रामदेव टस से मस नहीं हुए और उन्होंने रुचि सोया को टेकओवर करने का जो संकल्प लिया था उसे पूरा करने के लिए वे रात दिन लगे रहे और आखिर में उन्होंने रुचि सोया कंपनी को ले ही लिया और इस घाटे की कंपनी रुचि सोया को उन्होंने अपनी तपस्या और ऋषि कर्म से फायदे का सौदा बनवा दिया अब स्वामी रामदेव ने रुचि सोया कंपनी का नाम बदलकर पतंजलि सोया कंपनी कर दिया है
स्वामी रामदेव को यह कंपनी लेने में स्वामी रामदेव को अडानी ने लोहे के चने चबाने का पूरा बंदोबस्त किया हुआ था और न्यायालय तक यह मामला पहुंच गया था और स्वामी रामदेव ने रुचि सोया कंपनी को लेने का दृढ़ संकल्प किया हुआ था और वे न्यायालय की लड़ाई भी जीते आखिर अदानी बंधु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृपा पाने के बावजूद भी स्वामी रामदेव से रुचि सोया की जंग को नहीं जीत पाए दरअसल स्वामी रामदेव ने जो पतंजलि का इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित किया है उसमें ना तो नरेंद्र मोदी का हाथ है और ना किसी अन्य भाजपा नेता का हाथ, जो स्वामी रामदेव का प्रभाव बढ़ने लगा और उन्होंने पतंजलि योगपीठ की नींव रखी तो इसकी नीव को रखने के लिए तब के उत्तर प्रदेश के धरती पुत्र मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव आए वह पहले अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने स्वामी रामदेव को सपोर्ट किया उसके बाद मनमोहन सिंह सरकार के समय प्रोसेसिंग फूड्स नीति के तहत मेगा फूड पार्क बनाने की योजना बनाई गई उस योजना को अमलीजामा बनाने का पहला काम स्वामी रामदेव की पतंजलि मेगा फूड पार्क में किया जिसमें तब के केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सुबोध कांत सहाय ने स्वामी रामदेव की मदद जरूर की और उन्होंने स्वामी रामदेव के पतंजलि मेगा फूड पार्क का शिलान्यास किया और केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार की योजना का लाभ स्वामी रामदेव की पतंजलि मेगा फूड पार्क में उठाया और तब की मनमोहन सिंह सरकार की मदद और स्वामी रामदेव की लगन मेहनत ने उनके फूड पार्क को देश के सर्वश्रेष्ठ पर विकसित फूड पार्क की श्रेणी में खड़ा कर दिया
आर एस एस और भाजपा ने गंगा के नाम पर राजनीति करनी चाहिए और गंगा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने का अभियान चलाया वहीं दूसरी ओर स्वामी रामदेव ने गंगा को राष्ट्रीय राष्ट्रीय नदी बनाने के लिए अलग से अभियान शुरू किया और कानपुर में वे अनशन पर बैठे उन्हें तुरंत तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिल्ली का न्योता भेजा और स्वामी रामदेव के आग्रह पर मनमोहन सिंह सरकार ने गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया जिससे आर एस एस और भाजपा का गंगा के नाम पर राजनीति करने का सपना चकनाचूर हो गया स्वामी रामदेव ने मनमोहन सरकार के समय काला धन के खिलाफ विशेष अभियान शुरू किया और दिल्ली में रामलीला मैदान पर धरना देने का एलान किया जिस पर मनमोहन सिंह सरकार ने तब के केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व में मंत्रियों की एक कमेटी बनाई जिसमें सुबोध कांत सहाय भी थे सुबोध कांत सहाय की मध्यस्था में स्वामी रामदेव और केंद्र सरकार की बातचीत हो चुकी थी और काले धन के खिलाफ एक योजना बनाने और स्वामी रामदेव की बातों को मानने की सभी योजना बन चुकी थी परंतु कांग्रेस में बैठे आर एस एस भाजपा और नरेंद्र मोदी के एजेंटों ने मनमोहन सिंह सरकार और स्वामी रामदेव के बीच होने वाले काले धन के काले धन के खिलाफ इस समझौते को नाकाम बनाने की पूरी साजिश रची और वे सफल हुए और आखिर में रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे स्वामी रामदेव और उनके लाखों समर्थकों पर तब के गृहमंत्री रहे चिदंबरम ने लाठियां बरसाई और स्वामी रामदेव तथा कांग्रेस और तब कि मनमोहन सिंह सरकार के बीच कटुता पैदा हो गई और लंबी लकीरें खिंच गई और स्वामी रामदेव पर अपना ठप्पा लगाने की घात लगाए बैठे
आर एस एस और भाजपा के लोगों ने इस समय का पूरा लाभ उठाया और स्वामी रामदेव पर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ठप्पा लगाने में सफल रहे और तब केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार तथा कांग्रेस और रामदेव के बीच जबरदस्त खटास पैदा हो गई जिसका नतीजा स्वामी रामदेव को सीबीआई इंक्वायरी के रूप में झेलना पड़ा स्वामी रामदेव के रामलीला मैदान के घटनाक्रम के बाद भाजपा और कांग्रेस के ताकतवर नेताओं ने बताया कि कैसे उन्होंने साजिश के तहत स्वामी रामदेव को कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार के पाले से धकेल कर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के पाले में पहुंचाने के लिए साजिश रची थी और वे कामयाब रहे इस तरह स्वामी रामदेव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा और कांग्रेस में बैठे भाजपा के एजेंटों का शिकार बने थे
स्वामी रामदेव शुरू से ही गैर राजनीतिक रूप से चल रहे थे और स्वामी रामदेव पर राष्ट्रीय सेवक संघ और भाजपा ने अपना ठप्पा लगाने के लिए क्या-क्या राजनीतिक दांव पर चले यह जगजाहिर है जबकि स्वामी रामदेव ने अपनी प्रतिष्ठा और अपने बलबूते और अपनी मेहनत से इतना बड़ा साम्राज्य बनाया है और वे आज भी जमीन से जुड़े हैं और अहंकार से दूर हैं जब उनका साम्राज्य खड़ा हो गया और भी योग के द्वारा जन जन तक पहुंच गए तब उनके पीछे राजनीतिक दलों के नेता और राज सत्ता में बैठे लोग लगे स्वामी रामदेव जी पहले ऐसे संत है जिन्होंने 2013 में सबसे पहले पतंजलि योगपीठ में विशाल संत सम्मेलन आयोजित कर गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को बुलाकर देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित किया और इस तरह से भाजपा और उसके सहयोगी दलों में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का दबाव डाला और स्वामी रामदेव की नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की योजना सफल होगी और भाजपा पर इतना दबाव पड़ा कि भाजपा ने मजबूरी में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया और स्वामी रामदेव पूरे 1 साल तक पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में नहीं आए और उन्होंने पूरे देश में घूम घूम कर नरेंद्र मोदी का प्रचार किया और उन्हें प्रधानमंत्री का सबसे उपयुक्त उम्मीदवार अपनी जनसभाओं में बताया इस तरह स्वामी रामदेव ने 2014 के चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरे देश में माहौल बनाया था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली जब शपथ समारोह में स्वामी रामदेव को राज ऋषि के रूप में जिस तरह से सम्मान सहित बुलाना चाहिए था उन्हें नहीं बुलाया और वे शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गए और उन्होंने अपनी जगह आचार्य बालकृष्ण को भेज दिया था स्वामी रामदेव यह आश्रम में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी 4 साल तक नहीं आए 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीनों पहले वे स्वामी रामदेव के आश्रम में आए पतंजलि आयुर्वेद शोध संस्थान के उद्घाटन के लिए जब स्वामी रामदेव ने उनसे बहुत बार आग्रह किया तब वे प्रधानमंत्री बनने के 4 सालों में केवल एक बार ही आए काले धन को लेकर स्वामी रामदेव ने जो अभियान चलाया था सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस अभियान में भी रामदेव को कोई सहयोग नहीं किया और इस तरह जब रामदेव ने रुचि सोया कंपनी खरीदने का मन बनाया तो नई दिल्ली की सत्ता ने स्वामी रामदेव जैसे राज ऋषि का साथ देने की बजाय धन पिपासु अदानी साथ दिया और वक्त का पहिया देखिए जो कल तक पूरे विश्व में भारत का सबसे बड़ा रहीस था वह आज लुढ़क गया है अपने झूठे सच्चे आंकड़ों और बाजी गिरी के बल पर बनाई गई अपने साम्राज्य को गवा बैठा है जबकि स्वामी रामदेव अपने राजनीति राज ऋषि के तप बल के आधार पर आज पतंजलि को सातवें आसमान पर पहुंचा रहे हैं और उनका साम्राज्य लगातार बढ़ रहा है इसलिए लोग कहते हैं कि अदानी के साम्राज्य को स्वामी रामदेव का श्राप लग गया क्या स्वामी रामदेव की उपेक्षा करने वाले दिल्ली सत्ता के महान पुरुषों को भी 2024 में लोकसभा चुनाव में स्वामी रामदेव का श्राप लगेगा यह तो वक्त बताएगा आज स्वामी रामदेव का साम्राज्य साफ-साफ तरीके से खड़ा है और अपनी पताका को लहरा रहा है
वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बलबूते खड़ा किया गया हटाने का साम्राज्य ध्वस्त हो गया है और गुजरात के समुद्र में डूबने की ओर अग्रसर है यह फर्क है एक राज ऋषि और एक व्यापारी और सत्ता की धमक में खड़े किए गए साम्राज्य में अंतर शायद मोदी और उनके लाडले व्यापारी अदानी इस अंतर को ना समझ पाए