दल बदलू नेताओं के कारण राजनीतिक दलों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए करनी पड़ती है भारी मशक्कत

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दल बदलू नेताओं के कारण राजनीतिक दलों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए करनी पड़ती है भारी मशक्कत

विधानसभा के चुनाव आते ही उत्तराखंड में विभिन्न राजनीतिक दलों में दलबदल का दौर चल पड़ा है इस दल बदल के दौर से सबसे ज्यादा नुकसान राज्य के दौरान दो दलों भाजपा और कांग्रेस को उठाना पड रहा है दोनों दलों के नेता इस राजनीति नुकसान की भरपाई के लिए रात दिन ने किए हुए हैं और एक दूसरे के दलों के दिग्गज नेताओं को अपने अपने राजनीतिक दलों में लाने के लिए खींचतान कर रहे हैं ताकि एक दूसरे दल को नीचा दिखा सके नेताओं के दलबदल से राजनीतिक दलों को ज्यादा नुकसान और दल बदलू नेताओं को ज्यादा फायदा होता है हाल ही में भाजपा की पुष्कर सिंह धामी सरकार के बर्खास्त कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के रवैये ने राज्य की राजनीति में सबसे ज्यादा तूफान खड़ा किया हुआ है और भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को पशोपेश में डाल दिया हैं हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य और उनके विधायक बेटे संजीव आर्य के भाजपा के प्रति बागी तेवरों से भाजपा को बेहद नुकसान हो रहा है और इसकी भरपाई के लिए भाजपा ने नैनीताल सुरक्षित सीट की पूर्व विधायक और प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष सरिता आर्य को भाजपा में शामिल किया जबकि कांग्रेस ने उत्तरकाशी जिले की पुरोला विधानसभा सीट से पूर्व भाजपा विधायक मालचंद और उत्तरकाशी के ही जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक विजल्वाण ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है माल चंद की पुरोला और दीपक की यमनोत्री विधानसभा सीट पर अच्छी पकड़ मानी जाती है इन दो नेताओं के दलबदल से उत्तरकाशी में भाजपा को बड़ा झटका लगा है , दरअसल भाजपा ने कांग्रेस को राजनीतिक पटक देने के लिए दो महीने पहले उत्तराखंड में कांग्रेस के नेताओं को भाजपा में शामिल करने के अभियान की शुरुआत की थी भाजपा ने पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को भी पार्टी में शामिल करने की कोशिश की थी परंतु ऐन वक्त पर कांग्रेस ने उपाध्याय को मना लिया भाजपा नेताओं के दलबदल अभियान के जवाब में कांग्रेस ने भी भाजपा के नेताओं पर डोरे डालने शुरू किए भाजपा नेताओं के राजनीतिक दांव चलने के तहत उत्तरकाशी के पुरोला से कांग्रेस विधायक राजकुमार ने दो महीने पहले विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था. इससे भाजपा के पूर्व विधायक मालचंद खासे नाराज थे. इसके बाद से ही मालचंद की कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थी. कांग्रेस ने इस क्षेत्र में भाजपा को करारा झटका देने के लिए माल चंद समेत जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक को भी कांग्रेस में शामिल कर लिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए राजकुमार पहले भी भाजपा के विधायक रहे हैं इस तरह पुरोला विधानसभा सीट पर अब भाजपा से राजकुमार और कांग्रेस से माल चंद्र एक दूसरे के विधानसभा चुनाव लड़ेंगे जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में राज कुमार कांग्रेस और माल चंद्र भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे इस बार दोनों राजनीतिक दलों के समीकरण बदल गए हैं इसी तरह नैनीताल विधानसभा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए दलित दिग्गज नेता यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य भाजपा के टिकट पर और सरिता आर्य कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं और संजीव चुनाव जीते थे जबकि इस बार इसके उलट संजीव आर्य कांग्रेस के टिकट और सरिता आर्य भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी नैनीताल सीट पर भाजपा के दलित नेता हेमचंद्र सरिता आर्य को भाजपा में शामिल करने के खिलाफ खड़े हो गए हैं क्योंकि उनका टिकट काटकर अब सरिता आर्य को भाजपा अपना उम्मीदवार बनाएगी जबकि 2017 में भाजपा नेता हेमचंद्र का टिकट काटकर कांग्रेस के दलबदलू नेता संजीव आर्य को भाजपा ने टिकट दिया था इस तरह दल बंधुओं के चक्कर में भाजपा और कॉन्गस अपने समर्पित मूल कार्यकर्ताओं को नाराज कर रही है दल बदलू नेताओं की की इस लड़ाई में भाजपा को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है इसी तरह हरिद्वार जिले की भगवानपुर सुरक्षित सीट में पिछली बार भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़े सुबोध राकेश इस बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे इसी तरह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृह जनपद उधम सिंह नगर की जिला पंचायत अध्यक्ष मीना गंगवार और पंचायत सदस्य भारी तादाद में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और दलबदल का यह दौर अभी तक जारी है इसी दल बदल के डर के चलते कांग्रेस और भाजपा ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप नहीं दिया है जबकि दोनों दलों ने दावे किए है कि उन्होंने 70 विधानसभा सीटों में से 50-50 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय कर लिए हैं परंतु दोनों दल उम्मीदवारों की घोषणा करने से कतरा रहे हैं क्योंकि जैसे ही उम्मीदवारों के नामों की घोषणा होगी वैसे ही दोनों दलों में बगावत के सुर और तेज होंगे और दलबदल का दौर और तेजी से चलेगा इसलिए अभी क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल ,समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी ने अपने कुछ उम्मीदवारी घोषित किए हैं इन दोनों दलों को उम्मीद है कि कांग्रेस और भाजपा में टिकट बंटवारे को लेकर जो बगावत होगी उससे बागी उम्मीदवार उनकी उनकी पार्टियों के उम्मीदवार बन जाएंगे और उनकी राज्य की राजनीति में कुछ संभावनाएं बढ़ जाएंगी इस बार विधानसभा चुनाव में सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस के कुछ नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर दलबदल की राजनीति को बढ़ावा दिया हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र से आम आदमी पार्टी ने भाजपा के बागी नेता नरेश शर्मा को पुष्कर सिंह धामी सरकार में ताकतवर मंत्री स्वामी यतिस्वरानंद के खिलाफ खड़ा किया है माना जाता है कि नरेश शर्मा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक के दाहिने हाथ रहे और शर्मा को आम आदमी पार्टी में शामिल कराने में कौशिक का हाथ रहा है क्योंकि कौशिक और स्वामी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है आम आदमी पार्टी में शामिल हुए भुवन चंद्र खंडूरी के विश्वासपात्र रहे जुगरान को भाजपा में फिर से शामिल कराने में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक की अहम भूमिका रही सवाल यह उठता है कि कौशिक ने अपने दाहिने हाथ रहे नरेश शर्मा को भाजपा में फिर से शामिल क्यों नहीं करवाया जबकि वह राज्य सरकार के मंत्री स्वामी के खिलाफ आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में खड़े हैं उत्तराखंड के कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार पुराने खाटी चेहरे होंगे परंतु उनके दल पिछले चुनाव के मुकाबले अलग अलग होंगे इस तरह विधानसभा चुनाव के वक्त उत्तराखंड में दल बदलू नेताओं की पौ-बाहर हो जाती है आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड में इस बार दलबदल को बढ़ावा देने की शुरुआत की जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 2016 में भाजपा ने कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के खिलाफ कांग्रेस के ही 9 विधायकों को दलबदल करा कर राज्य की राजनीति में अस्थिरता कायम की थी इस दलबदल का ही परिणाम है कि आज भाजपा खुद ही कांग्रेस के दलबदलूओं के तेवरों का शिकार बनी हुई है सबसे पहला झटका भाजपा को दलित नेता और कांग्रेस गोत्र के नेता यशपाल आर्य ने पुष्कर सिंह धामी सरकार के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने विधायक बेटे के साथ कांग्रेस में शामिल होकर दिया उसके बाद कांग्रेस गोत्र के नेता हरक सिंह रावत ने भाजपा को करारा झटका दिया है कांग्रेस गोत्र के बागी विधायक रहे नेताओं के बल पर ही 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 विधानसभा सीटों में से 57 सीटें जीती थी और यह भाजपा की ऐतिहासिक जीत थी और कांग्रेस गोत्र के दल बदलू नेताओं के बल पर भाजपा की 2017 की यह ऐतिहासिक जीत आज भाजपा के लिए ही मुसीबत बनी हुई है कांग्रेस गोत्र के असंतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए भाजपाई अपने पुराने वफादार नेताओं की उपेक्षा कर रहे हैं जिससे वे नाराज हैं दल बदलू नेताओं के चक्कर में कांग्रेस और भाजपा दोनों दल अपने-अपने दलों के वफादार कार्यकर्ताओं की लगातार उपेक्षा कर रहे हैं जिसका नुकसान आने वाले समय में दोनों दलों को उठाना पड़ सकता है दूसरी ओर दलबदल करने वाले नेताओं के सामने भी कई समस्याएं आ रही हैं जैसे सरिता आर्य के खिलाफ नैनीताल में भाजपा के नेता हेमचंद्र और यशपाल आर्य के खिलाफ बाजपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के नेता कुलविंदर सिंह किंदा ने खूंटा गाड़ रखा है पिछले दिनों जब यशपाल आर्य के काफिले पर हमला हुआ था कुलविंदर सिंह किंदा का नाम इस हमले में आया था सूत्रों के मुताबिक यशपाल आर्य इस सीट पर अपने को सुरक्षित नहीं समझ रहे हैं और वे दूसरे विधानसभा क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं वहीं भाजपा से निकाले गए हरक सिंह रावत की जगह कोटद्वार से भाजपा कांग्रेस में शामिल हुए अपने पूर्व विधायक शैलेंद्र सिंह रावत को फिर से पार्टी में शामिल करके कोटद्वार से विधानसभा का टिकट देने पर विचार कर रही है शैलेंद्र सिंह रावत ने 2012 के विधानसभा चुनाव में कोटद्वार से उनका टिकट काट कर तब के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी को टिकट देने पर बगावत की थी और कांग्रेस में शामिल हो गए थे और यम्केश्वर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे खंडूरी और रावत दोनों चुनाव हार गए थे इस तरह दल बदलू नेताओं को लेकर कांग्रेस और भाजपा के विभिन्न विधानसभा सीटों पर समीकरण बदलते रहते हैं जिसका नुकसान दोनों दलों के वफादार कार्यकर्ताओं को उठाना पड़ता है और विभिन्न राजनीतिक दलों को दल बदलू नेताओं के कारण हो रहे राजनीतिक नुकसान की पूर्ति के लिए कई समझौते करने पड़ते हैं दल बदलू नेताओं के कारण राजनीतिक दलों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ती है
राजनीतिक विश्लेषक सुरेश पाठक का कहना है कि दल बदल की राजनीति ने राज्य की राजनीति को अस्थिर किया है जिससे फौरी तौर पर कांग्रेस और भाजपा को राजनीति फायदा तो मिलता दिखाई देता है परंतु यह इनके संगठन को कमजोर करता है क्योंकि वफादार कार्यकर्ता दलबदल की राजनीति की साजिश का शिकार हो जाते हैं आने वाले समय में उत्तराखंड में दलबदलू नेताओं की राजनीति चौपट हो जाएगी क्योंकि इनके विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के वफादार कार्यकर्ता विरोध करते हैं और कुछ विधानसभा क्षेत्रों में दल बदलूओं को अपनी विधानसभा सीट बदलनी पड़ती है

  

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