सौरभ पंत की कलम से,सात समन्दर पार.


नमस्कार।
मेरा नाम सौरभ है।
मैं अमेरिका के डेनवर शहर में रहता हूं। यह शहर अमेरिका के बिलकुल बीचों-बीच बसा है। इस शहर को माइल हाई सिटी भी कहते हैं क्योंकि यह शहर समंदर तल से तकरीबन एक मील ऊपर है।
इस शहर की स्थापना 1858 के गोल्ड रश के समय जनरल विलियम लरीमल द्वारा की गई थी। उसके बाद जब 1861 में कोलोराडो प्रांत की स्थापना हुई। तब इस शहर को कोलोराडो प्रांत की राजधानी बना दिया गया। आज डेनवर एक काफी बड़ा मेट्रोपॉलिटन शहर के रूप में उभर कर सामने आया है। जिसका क्षेत्रफल करीब 155 स्क्वायर मिल है और जनसंख्या करीब 29 लाख है।
इस शहर का भूगोल भी बड़ा दिलचस्प है। यह शहर रॉकी माउंटेन रेंज की तलहटी पर बसा है। रॉकी माउंटेन रेंज इसके बारे में अगर आप नहीं जानते हैं तो यह रेंज दुनिया की तीसरी सबसे लंबी पर्वतीय श्रृंखला है। हिमालय पर्वतीय श्रृंखला से अगर तुलना करें जो की 2600 किलोमीटर लंबी है यह श्रृंखला लगभग 4600 किलोमीटर लंबी है। एक और फर्क यह है कि यह श्रृंखला उत्तर से दक्षिण की तरफ है जबकि हिमालय पश्चिम से पूर्व की तरफ है।
इसी भूगोल व्यवस्था की वजह से जहां भारत की तलहटी में ठंड में तापमान न्यूनतम -5 डिग्री सेंटीग्रेड तक जाता है वही यहां – 30 डिग्री सेंटीग्रेड पर जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि जहां हिमालय हमें प्राकृतिक रूप से अधिक उठने वाली ठंडी हवाओं से बचाता है। वहीं यहां ऐसा नहीं होता है। इसके उलट गर्मियों में यहां का उच्चतम तापमान करीब 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि रॉकी माउंटेंस का भूगोल डेनवर और पूरे कोलोराडो को प्रशांत महासागर से आने वाली आने वाली हवाओं और नमी को रोकता है। इसलिए यहां पर पानी का मुख्य स्रोत बर्फ है ना कि मानसून की बारिश।
लेकिन जैसा बोला जाता है की आवश्यकता आविष्कार की जननी है। वैसे ही इन सब कठिनाइयों के बावजूद यहां पर लोगों ने रहना सीख लिया है और कोलोराडो अभी अमेरिका के आमिर प्रांतों में आता है। उदाहरण के लिए यहां पर घर सीमेंट के नहीं बल्कि लकड़ी के बनते हैं। आप लोगों ने अभी कैलिफोर्निया में आगजनी के बारे में सुनाई होगा, वह भी इसलिए क्योंकि यहां घर अधिकतर लकड़ी के होते हैं। मकान के अंदर एक लेयर फाइबर क्लास या सैलूलोज या थर्मोकोल का इस्तेमाल किया जाता है। इससे घरों का तापमान सर्दी और गर्मी दोनों में 20 से 30 डिग्री के बीच बनाए रखा जाता है और बिजली की भी बचत होती है। और यह तरीका प्रकृति के अनुकूल भी है। ऐसा नहीं है की शुरू से ही लकड़ी के घर बनते थे। 100 साल पहले यहां पत्थर के घर बनते थे जैसा कि हमारे यहां आजादी से पहले घर बना करते थे। पर समय के साथ और महंगाई के साथ यहां छोटे सुधार होते गए और आज भी जारी हैं। एक और उदाहरण के तौर पर यहां सब लोग अपने घरों पर सोलर पैनल लगा रहे हैं। जिससे बिजली के बिल में बहुत बचत होती है। यहां की सरकार भी इसको प्रोत्साहन दे रही है क्योंकि यहां पर सूरज साल में 300 दिन आता है। भारत में भी भारत की सरकार भी सोलर ऊर्जा को लेकर
इसी तरह का प्रोत्साहन लोगों को दे रही है, जहां पर आप अपने घर के ऊपर सोलर पैनल लगा सकते हैं और सब्सिडी प्राप्त कर सकते हैं।
तो अब एक आग्रह आप लोगों से यह है कि आप लोगों के पास कोई ऐसा छोटा सा सुधार या बदलाव हो,जिससे हमारी और हमारे आसपास के लोगों की जिंदगी और अधिक बेहतर हो सके तो आप मुझे लिख कर भेजिएगा। मैं आपको सात समंदर पार से एक स्थानीय उदाहरण के साथ नई जानकारी देने का प्रयास करूंगा।
प्रणाम।
(लेखक राजस्थान के जयपुर के रहने वाले हैं और इस समय भारत की एक कंपनी की तरफ से अमेरिका में तैनात है)