अयोध्या में मोरारी बापू की श्रीराम कथा का समापन
प्रेम है मार्ग वैराग का, प्रेम है द्वार विरक्ति का: मोरारी बापू
अयोध्या। श्रीराम की अवतरण भूमि अयोध्या से प्रवाहित रामकथा का रविवार को समापन हो गया।
नौवे दिन न्यास कमेटी के आदरणीय चंपत राय ने अपने भाव को रखते हुए कहा कि जहां कथा चल रही है वह अयोध्या का सुनसान स्थान है। बगल में मणि पर्वत नाम का स्थल है जहां एक महीने का झूला मेला लगता है। क्योंकि चैत्र माह में भगवान का प्रागट्य होने के बाद सावन में भगवान चार महीने के होते हैं सब लोग अपने-अपने झूले को लेकर बड़ी मात्रा में इकट्ठा होते हैं और बाकी सुनसान सड़क है, लेकिन आज इसी स्थान में राम कथा ने प्रभु के नाम ने विख्यात कर दिया।
कथा के अंतिम दिन मुरारी बापू ने श्रीराम के चरणों में प्रणाम करते हुए कहा की मानस राममंदिर केवल अयोध्या का नहीं, यह मेरे अंतःकरण की प्रवृत्ति का निवेदन है,केवल पृथ्वी का मंदिर भी नहीं,यह त्रिभुवन का मंदिर है। यहां ध्वज फहरेगी तो आसमान झुकेगा,घंटनाद होगा तो देश नृत्य करेगा। यह रामचरितमानस राम मंदिर है। एक ही सत्य को अनेक कोने से,अनेक रूप से देखते हैं,परिक्रमा करते हैं। ये त्रिभुवन गुरु शिव ने गाया है।
जैसे पहले बताया था कि मंदिर की नींव होती है, द्वार,गर्भ गृह, शिखर और दंड होता है, ध्वजा फहरती है। सातों सोपान में बालकांड नींव है। अयन का मतलब धाम,मंदिर,भवन,प्रासाद होता है।
कुंद इंदू सम देह उमा रमन करुना अयन।
यह करुणा,कृपा दया के धाम है।। तो बालकांड में जड़ चेतन का उत्साह राममंदिर की नींव है।। दर्शन करके कल लगा की पूर्णतया प्राण उतर चुके हैं। अयोध्या कांड प्लिंथ है।।हम सब का प्रेम अयोध्या कांड में गाया गया है।। कभी-कभी उत्साह बहुत होता है लेकिन प्रेम नहीं होता।। प्रेम है मार्ग वैराग का, प्रेम है द्वार विरक्ति का।।
और अरण्य कांड में सत्संग है।।वह द्वार है करोड़ों कामदेव रूपी अधिक शोभा-ये किष्किंधा कांड का गुण ग्राम है।।शिखर क्या है? धीरे-धीरे उर्ध्व गमन की ओर हमें खींचता है। ऊपर उठने की सीख देता हुआ सुंदरकांड शिखर है।।दंड है लंका कांड- जहां विजय विवेक सीखना है।।यह राम मंदिर की ध्वजा उत्तकॉंड है।। प्रिय लागहु मोहि राम।। राम की तरफ प्रिय भाव यह ध्वजा है।।
बालक का एक अर्थ सूर्य होता है। जैसे बाल पतंग। सुबह का सूर्य।। इष्ट देव शब्द सात बार आया है।। भूसुंडी जी के इष्ट देव-राम है।। सूर्य के सात घोड़े सात किरणें हैं।अग्नि की सात जीह्वा है और चंद्र के सोलह में से सात रूप महत्व के।। है तो यह तीनों को मिलाते हैं, सात-सात और सात 21 कीरणों ने भूसुंडी जी को दीक्षित कर दिया है ।।
बापू ने बताया कि अभी दो साल लगेंगे शिखर लगने में,शिखर लगने के बाद एक बार फिर दो साल के बाद कथा गान करने के लिए आऊंगा। यह पूरा सत्कर्म राम लला की दिव्य सेव्य चरणों में रखते हुए रामकथा को विराम दिया गया
अगली-933 वीं रामकथा 23 मार्च से रवेची माताजी के आंगन में रवेची मंदिर-रव,मोटी रापर(कच्छ-गुजरात) से प्रवाहित होने जा रही है।।
ये कथा का जीवंत प्रसारण नियत समय पहले दिन 23 मार्च-शनिवार शाम 4 बजे और शेष दिनों में सुबह 10 से आस्था टीवी चेनल और चित्रकूटधाम तलगाजरडा यू-ट्यूब माध्यम से देखा जा सकता है।।