मैडम तुसाद म्यूजियम में लगेगी बाबा रामदेव की मोम की प्रतिकृति, बने पहले भारतीय संन्यासी
जो भी भारत की मिट्टी में पैदा हुआ है, वह भारत रत्नः स्वामी रामदेव
हरिद्वार। पहले भारतीय संन्यासी योगऋषि स्वामी रामदेव की मोम की प्रतिकृति का अनावरण विश्व प्रसिद्ध मैडम तुसाद, न्यूयार्क द्वारा दिल्ली में किया गया। यह भारतीय संस्कृति, संन्यास और सनातन योग परम्परा के वैश्विक प्रभाव की अत्यंत महत्वपूर्ण मान्यता और प्रतिष्ठा का परिचायक है।
कार्यक्रम में स्वामी रामदेव ने कहा कि मैडम तुसाद, न्यूयॉर्क में 200 से ज्यादा बड़े आयकॉन्स के फिगर लगे हैं जिनमें अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय, ऋतिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा तथा शाहरूख खान आदि हैं किन्तु वर्ल्ड के उन 200 रिनाउंड आइकॉन्स के साथ भारत के एक संन्यासी को इन्होंने जो सम्मान दिया वह एक संन्यासी का गौरव नहीं अपितु पूरे भारत का गौरव है। आज पूरी दुनियां की निगाहें भारत के योग व आयुर्वेद पर हैं। अब तो अमेरिका में भी मेड इन यूएस तथा मेड बाई अमेरिका के कान्सैप्ट पर चल रहा है। योग, आयुर्वेद एवं स्वदेशी का जो मूमेंट पतंजलि से चलाया था उसकी लहर अब पूरी दुनियां में हैं।
स्वामी रामदेव ने बताया कि इस प्रतिकृति को बनाने में लगभग 200 आर्टिस्ट का पुरुषार्थ तथा लगभग 2 करोड़ रुपए की लागत आई है। यह कास्ट का विषय नहीं हैं, यह एक कॉन्सेप्ट है, जिसमें भारत और भारतीयता को, भारत के एक संन्यासी को स्थान दिया है। हम इसके लिए मैडम तुसाद की टीम के प्रति कृतज्ञ हैं। उन्होंने कहा कि यह स्वामी रामेदव का सम्मान नहीं अपितु यह भारत की सनातन संस्कृति, योग, आयुर्वेद, भारत की सनातन संस्कृति, हमने पूर्वजों की सांस्कृतिक विरासत का सम्मान है। हमारा उद्देश्य है कि पूरे विश्व में ऐसे रचनाधर्मिता वाले पुरुषार्थी व्यक्तित्व तैयार हों जो योग के पथ पर, कर्तव्य के पथ, कर्मयोग के पथ पर आगे बढ़ते चलें। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व की पूजा करो, चित्र नहीं चरित्र की पूजा करो। इसलिए हमने इसको न कोई मूर्ति बोला, न इसकी पूजा की और न ही कोई प्राण प्रतिष्ठा की, यह मात्र प्रेरणा के लिए है। सनातन परम्परा व संस्कृति के शाश्वत ज्ञान, विज्ञान व प्रज्ञान पर हमें नए सोपान स्थापित करने हैं।
स्वामी रामदेव ने कहा कि जो भी भारत की मिट्टी में पैदा हुआ है, वह भारत रत्न है। उसे ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि वह विश्व में भारत माता का गौरव प्रतिष्ठापित करने के लिए अपना क्या योगदान दे सकता है। उन्होंने बताया कि मेरे पास पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण तक के ऑफर आए थे जिन्हें मैंने इन्हें विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया क्योंकि संन्यासी सत्कार और तिरस्कार दोनों से ऊपर होता है।
विदित है कि स्वामी रामदेव के विकल्प रहित संकल्प और अखंड-प्रचंड पुरुषार्थ ने योग, आयुर्वेद और स्वदेशी की वैश्विक क्रांतियों को जमीन पर उतार कर मूर्त रूप दिया। उनके नेतृत्व में भारतीय शिक्षा व्यवस्था, भारतीय चिकित्सा व्यवस्था एवं सनातन परम्परा व संस्कृति के शाश्वत ज्ञान, विज्ञान व प्रज्ञान पर अनुसंधान की वैश्विक प्रतिष्ठा की तीन बड़ी क्रांतियाँ पतंजलि से प्रारंभ होने वाली हैं।
इस अवसर पर स्वामी रामदेव के जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म का भी प्रदर्शन किया गया।
कार्यक्रम में मैडम तुसाद, न्यूयॉर्क के मार्केटिंग हैड टियागो मोगाडोरा, सहायक मैनेजर बैन, मैडम तुसाद, नई दिल्ली के जनरल मैनेजर अंशुल जैन, पतंजलि योगपीठ के सह संस्थापक आचार्य बालकृष्ण, पतंजलि योगपीठ यूके ट्रस्ट की मुख्य ट्रस्टी सुनीता पौद्दार, प्रवक्ता एस.के. तिजारावाला, प्रमोद जोशी, मनोज त्यागी, भारत स्वाभिमान के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी राकेश कुमार आदि उपस्थित रहे।