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मेघदूत के नाम रही नाट्य समारोह की तीसरी शाम

रामचरित मानस के सुंदरकांड पर आधारित नाटक भय बिनु होई न प्रीति का दून विवि में शानदार मंचन

देहरादून।

दून विश्वविद्यालय के रंगमंच और लोक कला विभाग और उत्तर नाट्य संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से विश्व रंगमंच दिवस पर आयोजित किए जा रहे सात दिवसीय नाट्य समारोह की तीसरी शाम राजधानी के प्रतिष्ठित नाट्य समूह “मेघदूत नाट्य संस्था” के नाम रही।
दून विश्वविद्यालय के डॉ. नित्यानंद हिमालयन शोध तथा अध्ययन केंद्र में चल रहे नाट्य समारोह में मेघदूत के संस्थापक और वरिष्ठ रंगकर्मी एस. पी. ममगाई द्वारा निर्देशित नाटक ‘ भय बिनु होई न प्रीति ‘ का शुभारम्भ उत्तरांचल विश्वविद्यालय के प्रति उप कुलपति प्रो. राजेश बहुगुणा ने दीप प्रज्वलित कर किया।
प्रो. बहुगुणा ने अपने संबोधन में नाटक के शानदार मंचन के लिए मेघदूत संस्था के कलाकारों को बधाई दी।
“भय बिनु होई न प्रीति” नाटक का कथानक गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस के पंचम सोपान सुंदरकांड से लिया गया है। इसमें हनुमान प्रसाद पोद्दार की टीका और गोस्वामी द्वारा रचित मानस के पंचम सोपान का नाट्य रुपान्तर किया गया। नृत्य तथा संगीत के समायोजन के लिए तुलसीदास की ही कृति विनय पत्रिका के प्रसंग भी नाटक में जोड़े गए थे। सुंदरकांड में मूलत: सीता की खोज के अभियान के तहत समुद्र तट पर जामवंत द्वारा हनुमान को उनकी शक्तियों का बोध कराना, हनुमान का लंका में प्रवेश, विभीषण की सूचना के आधार पर अशोक वाटिका में हनुमान की सीता से भेंट, हनुमान द्वारा फल खाने के बाद उद्यान को क्षति पहुंचाने और रावण की सेना को हताहत करने के बाद इंद्रजीत द्वारा हनुमान को नाग पाश में बांध कर रावण के समक्ष ले जाना और पूंछ जलाने के कारण लंका दहन के बाद हनुमान की वापसी पर रामचंद्र द्वारा लंका प्रस्थान के लिए समुद्र से मार्ग मांगने के लिए तीन दिन तक विनय करने के बावजूद मार्ग न देने पर समुद्र को ही सुखाने के लिए सर संधान तक का प्रसंग लिया गया था।
एस. पी. ममगाई द्वारा प्रस्तुत इस अर्द्ध अनुष्ठानिक नाट्य प्रस्तुति का दर्शकों ने भरपूर आनंद लिया। निसंदेह नाटक में कलाकारों ने पूरे मनोयोग से अपनी भूमिकाओं का निर्वहन किया। रामचंद्र की भूमिका सिद्धार्थ डंगवाल ने निभाई, जबकि अनुपमा ममगाई ने सीता के किरदार को पूरी शिद्दत के साथ निभाया। दीपक शर्मा ने लक्ष्मण, उत्तम बंदूनी ने रावण, नंद किशोर त्रिपाठी ने जामवंत, अक्षत जेटली ने सुग्रीव, रूपिका पासी ने मंदोदरी, सावन गैरोला ने विभीषण और रविंद्र गोस्वामी ने अंगद की भूमिका निभाई। कथानक के केंद्र बिंदु हनुमान के रूप में विजय डबराल ने शानदार अभिनय किया।
श्री ममगाई ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के कथानकों के निर्देशन के लिए जाने जाते हैं। इससे पहले संजीवनी, ज्योतिर्मय पद्मिनी, कृष्णावतार, उषा अनिरुद्ध प्रणय जैसे अनेक नाटकों का वह लेखन, निर्देशन कर चुके हैं और अनेक नाटकों में अभिनय भी करते रहे हैं। उनके अनेक शिष्य आज फिल्म, थियेटर, मास मीडिया आदि क्षेत्रों में ख्यातिप्राप्त कर चुके हैं। भय बिनु होई न प्रीति नाटक में गीत संगीत को भी पर्याप्त स्थान दिया गया था। इस नाटक को संगीत से आलोक मलासी ने सजाया था। रामचरित मानस की चौपाइयों का प्रसंग के अनुरूप उन्होंने पार्श्व गायन भी किया। तकनीकी निर्देशक मोहित कुमार का संयोजन भी यादगार रहा। कार्यक्रम का संचालन थियेटर के जाने माने कलाकार अनिल दत्त शर्मा ने किया। समारोह को डॉ. राकेश भट्ट, डॉ. हर्ष डोभाल ने भी संबोधित किया। एस.पी. ममगाई ने मुख्य अतिथि तथा सभी दर्शकों का धन्यवाद किया।

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