परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी, डीन, एफडब्ल्यूएस डॉ. रुचि बडोला जी और त्रिनिदाद से आये स्वामी ब्रह्मस्वरूपानन्द जी व स्वामी आनंदमयी गिरि जी ने 11 राज्यों से आये गंगा प्रहरियों को किया सम्बोधित
ऋषिकेेश, 21 मार्च। परमार्थ निकेतन में नमामि गंगे कार्यक्रम के अंर्तगत भारतीय वन्यजीव संस्थान और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तत्वाधान में आयोजित 3 दिवसीय गंगा प्रहरी कॉन्क्लेव के समापन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी, डीन, एफडब्ल्यूएस डॉ. रुचि बडोला जी ने 11 राज्यों से आये गंगा प्रहरियों को गंगा सहित अन्य सहायक नदियों के संरक्षण और पौधारोपण का संदेश दिया।
इस अवसर पर त्रिनिदाद से विशेष रूप से परमार्थ निकेतन पधारे स्वामी ब्रह्मस्वरूपानन्द जी भी उपस्थित थे, जो कि त्रिनिदाद के विश्व विद्यालय में कुलपति भी हैं और विगत 30 वर्षों से भारतीय संस्कृति की गंगा पश्चिम की धरती पर प्रवाहित कर रहे हैं।
विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने संदेश दिया कि ’’वन है तो वशंज है’’ इसलिये पौधों का रोपण कर वैश्विक उत्सव मनाये क्योंकि यह हमारे और हमारे ग्रह के स्वास्थ्य और कल्याण के लिये अत्यंत आवश्यक है। आज का दिन पृथ्वी पर जीवन को जीवंत बनाए रखने में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका के महत्व को दर्शाता है। यह दिन हमें प्रकृति से जुड़ने व जोड़ने का संदेश भी देता है। यह प्रकृति के साथ हमारे अंतर्संबंधों का स्मरण कराता है और हमें वनों की सुरम्यता, सुंदरता, समुद्धि और पारिस्थितिक मूल्यों का स्मरण कराता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने गंगा पहरियों को सम्बोधित करते हुये कहा कि आप सभी पिछले तीन दिनों से इस दिव्य व पवित्र धरती पर रह रहे हैं जिसे मैं पावर हाऊस कहता हूँ। आप सभी यहां से चार्ज होकर जायें।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 में 250 गंगा प्रहरियों से परमार्थ निकेतन से ही यह यात्रा शुरू की थी और आज लगभग 5000 गंगा प्रहरी है। प्रहरी अर्थात पहरेदार जो स्वयं भी जागता है दूसरों को भी जगाता है।
स्वामी जी ने कहा कि आज विश्व वानिकी दिवस है और हमें मालूम होना चाहिये कि जंगल, नदी की माँ है, जगंल है तो जीवन है। नदियाँ हैं तो दुनिया है इसलिये हमें जंगलों का संरक्षण करने में योगदान देना होगा। उन्होंने कहा कि अब हम पार्टी पेडे देकर नहीं पेड़ देकर मनायेंगे। स्वामी जी जन्मदिवस व विवाहदिवस के अवसर पर पौधों के रोपण करने का संकल्प कराया।
त्रिनिदाद से आये स्वामी ब्रह्मस्वरूपानन्द जी ने बताया कि स्वामी जी महाराज की प्रेरणा से त्रिनिदाद में हमने एक नदी का नाम गंगा धारा रखा है। स्वामी जी यहां पर बैठे हैं परन्तु इनकी प्रेरणा अनेक देशों में है। मारिशस में भी गंगा घाट, साउथ अफ्रीका में गंगा रानी है इस प्रकार गंगा का प्रवाह सम्मान अनेक देशों में है। यह सब स्वामी जी का प्रभाव है।
उन्होंने कहा कि जीवन, जल और जन्तु मानव सभ्यता के लिये बहुत महत्व रखते हैं। हमारी जितनी नदियां है उनका जल, स्वाद और आक्सीजन लेवल अलग-अलग है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने माँ गंगा के अविरल व निर्मल प्रवाह को बनाये रखने का संदेश देते हुये कहा कि हमें अपनी जीवन शैली को बदलना होगा। जिन चीजों का हम उपयोग कर रहे हैं; जो खरीद रहे हैं उस पर ध्यान देना होगा। जो हम खरीद रहे हैं उसके बारे में जानना होगा कि हम जो खरीद रहे है वह उद्योग नदियों के तटों पर तो स्थित नहीं है, उसका कचरा नदियों में प्रवाहित तो नहीं हो रहा इस पर हमें अपनी आवाज को उठाना होगा। हमारी आवाज को उठाना होगा कि जिन फैक्ट्रियों को कचरा नदियांे में नहीं जा रहा उन मान्यता प्राप्त फैक्ट्रियों के उत्पाद ही खरीदे।
डॉ. रुचि बडोला जी ने कहा कि गंगा बेसिन के 11 राज्यों से आये हमारे गंगा प्रहरी – ’गंगा सहित अन्य सहायक नदियों के संरक्षक’ है। वे स्थानीय स्तर पर गंगा के संरक्षक है। एक स्वयंसेवक के रूप में गंगा सहित अन्य नदियों की अविरल और निर्मल धारा को बनाए रखते हुए जलीय जीवन के संरक्षण में महत्व पूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
उन्होंने कहा कि गंगा प्रहरी सामाजिक एकजुटता का प्रतीक है। जमीनी स्तर पर बदलाव लाने में गंगा प्रहरियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने कुम्भ मेला में परमार्थ निकेतन के साथ मिलकर किये गये कार्यों का भी जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि प्रहरी एक बड़ी जिम्मेदारी है। जिसे हम सब मिलकर पूरी करेंगे और अपनी नदियों व जल जीवन के संरक्षण में योगदान प्रदान करेंगे।
स्वामी जी ने गंगा प्रहरियों को गंगा सहित सहायक नदियों के तटों पर पौधारोपण करने का संकल्प कराते हुये कहा कि गंगा के किनारे पेड़ लगे प्यारे और हाथ लगे सारे। सब मिलकर कर अपनी नदियों के लिये कार्य करेंगे तो उसके परिणाम भी विलक्षण होंगे।