स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में किया सहभाग
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, महामहिम राज्यपाल मणिपुर, सुश्री अनुसुइया उईके जी, श्री अरविंद कुमार सिंह जी, (पौत्र राष्ट्रकवि श्री दिनकर जी) गृह राज्यमंत्री, भारत सरकार, श्री अजय कुमार मिश्र जी, सांसद, राज्यसभा, श्री रामचंद्र जांगड़ा जी, माननीय पूर्व केन्द्रीय मंत्री पद्मश्री डाॅ सी पी ठाकुर जी, अपर सचिव, उपभोक्ता खाद्य मंत्रालय, श्री शांतमनु जी, अध्यक्ष एनआईओएस, नई दिल्ली, प्रो सरोज शर्मा जी, सदस्य सचिव, आईसीपीआर प्रो सच्चिदानन्द मिश्र जी, अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन, महासचिव, विश्व हिन्दी परिषद् एवं संयोजक, डा बिपिन कुमार, सहसंयोजक श्री दीपक ठाकुर जी और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने किया सहभाग
ऋषिकेश, 20 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विज्ञान भवन में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में सहभाग कर वीर रस के प्रसिद्ध कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की। स्वामी जी के आशीर्वचन व उद्बोधन से पूरा वातावरण दिव्यता व भव्यता से युक्त हो गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व हिन्दी परिषद् द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सहभाग कर सभी को सम्बोधित करते हुये कहा कि ’हिन्दी, भाषा ही नहीं हम भारतीयों के दिलों की घड़कन है।’’ हिन्दी, दिल की भाषा है और वह दिलों को जोड़ती है इसलिये हमें भी हिन्दी के साथ दिल से जुड़ना होगा और हर परिवार में हिन्दी को स्थान दिलवाने के लिये प्रयत्न करना होगा, इसके लिये ज्यादा से ज्यादा हिन्दी बोले तथा भावी पीढ़ी को भी हिन्दी से जोड़े। हम अपनी-अपनी मातृभाषा जरूर बोले परन्तु हिन्दी सब को आनी चाहिये इसके लिये भी प्रयास करना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि भारत की महान, विशाल, गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और विरासत को सहेजने में हिन्दी का महत्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी भारतीय संस्कारों और संस्कृति से युक्त भाषा है। हिन्दी से जुड़ना अर्थात अपनी जड़ों से जुड़ना, अपने मूल्यों से जुड़ना और अपनी संस्कृति से जुड़ने से है। भारत में हिन्दी और संस्कृत का इतिहास बहुत पूराना है। हिन्दी, न केवल एक भाषा है बल्कि वह तो भारत की आत्मा है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत जैसे विशाल और विविधताओं से युक्त राष्ट्र में हिन्दी न केवल संवाद स्थापित करने का एक माध्यम है बल्कि हिन्दी ने सदियों से हमारी सभ्यता, संस्कृति और साहित्य को सहेज कर रखा है। भारत, बहुभाषी देश है यहां पर हर सौ से दो सौ किलोमीटर पर अलग-अलग भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं और प्रत्येक भाषा का अपना एक महत्व है परन्तु हिन्दी के विकास और प्रसार की अपार संभावनाएँ हैं बस जरूरत है तो हिन्दी भाषा को दिल से स्वीकार करने की।
हिन्दी भाषा सृजन की भाषा है और स्वयं को अभिव्यक्त करने का सबसे उत्कृष्ट माध्यम है। हिन्दी साहित्य और कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्ति के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचा जा सकता है। हिन्दी भाषा सभी को आपस में जोड़ने का सबसे सरल और श्रेष्ठ माध्यम है।
हिंदी भाषा की विकास यात्रा से तात्पर्य हम सभी की विकास यात्रा से है। वास्तव में हिंदी भाषा की विकास यात्रा सतत विकास की प्रक्रिया है। समाज और संस्कृति के विकास में हिन्दी भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। हिंदी जन-जन की भाषा है, हिंदी संपर्क भाषा है और हिन्दी ने जनसमुदाय को भावनात्मक, भावात्मक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा है।
हिंदी भाषा साहित्यिक भाषा है, इसे हृदय से स्वीकार करने के साथ मल्टीनेशनल कंपनियों के दैनिक कामकाज के लिये भी स्वीकार करना होगा और इस हेतु सेमिनारों, समारोहों और कार्यक्रमों का आयोजन करना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही हिंदी को नई सूचना-प्रौद्योगिकी के अनुसार ढालना जरूरी है। वास्तव में वर्तमान पीढ़ी को हिन्दी को खुले दिल से स्वीकारने की अत्यंत आवश्यकता है। विश्व हिन्दी परिषद् का यह प्रयास उत्कृष्ट और अद्भुत है।
हिंदी, भारत की संपर्क भाषा है और निरन्तर विकसित और परिष्कृत भी हो रही है परन्तु अब जरूरत है तो हिन्दी को सम्मानजनक स्थान दिलाने की इसलिये उसे भारत के प्रत्येक घर और हर भारतीय के हृदय में स्थान मिलना चाहिये। आईये संकल्प लें हिन्दी से जुड़े और जोड़े।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार, समाचार एंकर, सम्पादक श्री सुधीर जी को किया सम्मानित। इस कार्यक्रम हेतु विनय भारद्वाज जी, अध्यक्ष विश्व हिन्दी परिषद्, उपाध्यक्ष श्री देवी प्रसाद मिश्र जी और अन्य पदाधिकारियों ने विशिष्ट सहयोग प्रदान किया।