आत्म मुग्धता का नतीजा मनसा देवी की घटना
आदेश त्यागी की कलम से
मनसा देवी मंदिर पैदल मार्ग पर रविवार को हुए हादसे में 6 लोगों की अकाल मौत ओर 32 यात्रियों के घायल होने की घटना कई सवाल छोड़ गई हैं कि घटना के मूल में लापरवाही और जिम्मेदारी किसकी है।
कावड़ मेले की सफलता के जश्न में डूबी
पुलिस की उदासीनता या
मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट प्रबंधन की कमियां
या अफवाहों का बाजार ??
हादसे के बाद
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घटना पर शौक जताते हुए दुःख व्यक्त किया और जिला चिकित्सालय पहुंच कर घायलों का हाल जाल जाना ।
भगदड़ हादसे की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए गए हैं।
घटना के तत्काल बाद एक शब्द मेरे मस्तिष्क में उभर कर आया,
“””आत्ममुग्धता”””।
कावड़ मेला सम्पन्न होने के बाद जिला प्रशासन,पुलिस विभाग शायद आत्मुग्धता का शिकार हो गया था ।
साधु, संत व्यापारी सभी कावड़ मेला सम्पन्न हो जाने पर सम्मान समारोह आयोजित कर रहे थे ।
अधिकारियों के हिस्से में पगड़ियां ,पटके
गुलदस्तों की बहार आई हुई थी।
शायद जिले के अधिकारी यह भूल गए थे कि
श्रावण मास , व चारधाम यात्रा खत्म हो गई।
लेकिन यात्रा , श्रावण माह अभी चल रहा है,
तीर्थ नगरी में शनिवार , रविवार को भीड़ बहुत रहती ही है , कावड़ मेला सकुशल सम्पन्न होने के बाद प्रबंधन थोड़ा कमजोर हुआ ओर अतिरिक्त पुलिस बल हटा लिया गया था।
मेरी दृष्टि में यह निर्णय
“आत्ममुग्धता” जैसा था।
हम कावड़ मेला की सफलता के जश्न में मदहोश हो चले थे । ओर मनसा देवी मंदिर पैदल मार्ग पर सुबह 9बजे भीड़ बढ़ने से भगदड़ मच गई। इस घटना में 6 की अकाल मृत्यु हो गई।
इस तरह का एक वाकया 1992 में भी हुआ था।
अर्ध कुंभ मेला समाप्ति के बाद ज्वालापुर पंजाबी धर्मशाला में अधिकारियों का सम्मान किया जा रहा था तभी रुड़की बढ़ेडी के समीप आतंकवादियों ने एक यात्री बस पर हमला कर जश्न में खलल डाल दिया था।
हरिद्वार जिले में तैनात रहने वाले अधिकारी हमेशा
एक बात याद रखे कि
“””हरिद्वार में रात रात में पत्थर के आदमी बन जाते है””